The Dharampur City
Dharampur is a Town in Dharmpur Tehsil in Mandi District of Himachal Pradesh State, India. It is located 22 KM towards west from District head quarters Mandi. It is a Tehsil head quarter. Dharampur Pin code is 175040 and postal head office is Dharampur (Mandi). Banal (1 KM), Dhwali (3 KM), Langna (4 KM), Neri (4 KM), Brang (5 KM) are the nearby Villages to Dharampur. Dharampur is surrounded by Jogindernagar towards North, Drang Tehsil towards East, Bamson Tehsil towards west, Mandi Tehsil towards East.
Mandi, Hamirpur, Sundarnagar, Nangal are the nearby Cities to Dharampur. This Place is in the border of the Mandi District and Hamirpur District. Hamirpur District Bamson is west towards this place.
अतीत की अनेक यादें संजोए है धर्मपुर
मंडी जनपद के अंतर्गत सरकाघाट तहसील की जनित्रीधार की सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में सोनवदद के तट पर-रचा-बसा है एक पावन स्थल धर्मपुर| जो अपने गर्भ में अतीत की अनेक प्राचीन यादें आज संजोए है |
धर्मपुर के नामकरण की कहानी :- बड़े बूढ़ों तथा दन्त कथाओं के अनुसार धर्मपुर के नामकरण की कहानी भी बड़ी रोचक है | इसके साथ धार्मिक ऐतिहासिक व पौराणिक कथानक जुड़े है | बताते है की रियासत काल में मंडी के राजा का शासन था | एक दफा मंडी रियासत का शासन अपनी रानी सहित क्षेत्र के दौरे पर आया | गर्मी का मौसम था | उन दिनों यातायात की सुविधा नहीं थी और पैदल ही चलना होता था | जब राजा-रानी अपने लाव-लश्कर सहित धर्मपुर पहुंचे तो उस समय रानी बहुत थक गई थी |उसने साथ की वगिया में सघन पेड़ों की छाया में विश्राम किया | विश्राम करने के उपरांत रानी की स्नान करने की इच्छा हुई | साथ में एक निर्मल जल से भरा हुआ सुरम्य तलाब था जिसे स्थानीय भाषा में "नौण" कहते है| रानी उस तालाब में स्नान करने उतरी | जब वह स्नान करने के बाद यहाँ से चली गई, पर उसका "नौलखा हार" तालाब के तट पर टंगा हुआ रह गया | कुछ दूर जाने के बाद रानी को अपने "नौलखा हार" की याद आई | राजा ने अपने नौकर-चाकर "नौलखा हार" को तलाशने के लिए वापिस भेजे | वे "नौलखा हार" हार को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते धर्मपुर पहुंचे और जिस नौण में रानी ने स्नान किया था वहां रानी का हार सुरक्षित भी सलामत कील के साथ टंगा हुआ मिल गया | लोगों की ईमानदारी को देखकर राजा बहुत प्रभावित हुआ और इस स्थान को धर्म की नगरी से पुकारा जो कालांतर में धर्मपुर के नाम से रूढ़ हो गया|
लोग बताते है कि उस क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा क्षेत्र से जुड़े हुए देवी-देवताओं जिनमे जालपा माता, जनित्री, पाण्डला, देऊ, बनाल और शीतला माता धर्मपुर पर है| ये तीनों आपस में भाई-बहन है | आषाढ़ माह में शीतला माता मंदिर परिसर में एक भव्य मेला सक्रांति को (आषाढ़ प्रविष्टे एक) लगता है तथा यह तीनो भाई-बहन साल एक बार यहाँ मिलते है| बनाल देऊ इस दिन खेल के माध्यम से बरसात के भयंकर मौसम में भविष्यवाणी करता है कि बरसात का मौसम अनेक बिमारियों को जन्म देता है अतः बरसात में होने वाली हर बीमारी तथा पशुओं की बीमारी से रक्षा करने की हामी भरता है | इसके अलावा इस क्षेत्र की विख्यात शक्ति पीठ बाबा कमलाहिया, कमलाह गढ़, जालपा माता सकैण, नैणा माता बनवार कला, शिव मंदिर, गायत्री पीठ व शीतला माता मंदिर धर्मपुर, शिव मंदिर शिवकला, महादेव मंदिर भेड़ी नील कंठ मंदिर लघु हरिद्वार काढापतन व शिवमंदिर तथा जालपा माता मंदिर सिद्धपुर आदि क्षेत्र के अनेक स्थानों पर नर अन्य भी लोगों की आस्था के केंद्र है|
धर्मपुर के माध्यम से बहती सोनखड्ड का भी काफी महत्व है| इस खड्ड में सोना पाया जाता है| रेत कणों को छानकर क्षेत्र के लोग सोना निकालकर अपनी आजीविका अर्जित करते थे| पर परिवेश में अवैज्ञानिक खनन ने इस व्यवसाय को धक्का पहुंचाया है पुरातन काल की विरासतों का वर्णन करना भी समीचीन लगता है|
यहाँ सोनखड्ड के मध्य स्थित "भूरसानी रोड़ा" जो पांडवों के अज्ञातवास के समय की जानकारी देता है जिसे भीमसेन की कटोरी का चुगल बताते है| इसलिए चुगली रोड कहलाया| पर आश्चर्य की बात यह है कि सदियों से सोनखड्ड के समय स्थित इस पत्थर पर भयंकर बाढ़ के आने पर भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ|
धर्मपुर से कुछ दूरी पर व्यास नदी के किनारे बने "लघु-हरिद्वार" कांढापतन भी पांडवकालीन आज्ञातवास की कहानी वर्णित करता है| जहां हरिद्वार का निर्माण करने के लिए व्यास के गहरे पानी में "सोने की अढ़ाई पौड़ी" ही लगा पाए थे सवेरा होने का आभास और अपशगुन होने पर यहाँ निर्माण को अधूरा छोडकर चल दिए थे| परन्तु आज भी श्रद्धालुओं की आशा का केंद्र है लघु हरिद्वार कांढापतन| इसे लोग "जेठी गंगा"के नाम से भी जानते है तथा गंगा दशहरा पर्व पर यहीं आस्था की डुबकी लगते है| धर्मपुर में ही सोनखड्ड के मध्य "शिवपार्वती" की एक जुड़वाँ पाषाण शिला है जिसे स्थानीय लोग "महादेव-रा-रोड़ा" नाम से जानते है|
बुजुर्ग बताते है की जब कभी सोनखड्ड के प्रलयकारी बाढ़ आने वाली हो तो इस प्रस्तर शिला से आग की चिंगारियां निकलने लगती है| लोग इन चिंगारिओं को देखकर सतर्क हो जाते थे और अपनी सुरक्षा कर लेते थे| आज जो नया धर्मपुर है यह कभी वीरान जगह हुआ करती थी तथा यहाँ गीदड़ों के चीखने के स्वर ही सुनाई देते थे| पुराण धर्मपुर जहाँ शीतला माता मंदिर व एक शीतल जल की बाबड़ी है यहाँ पूर्व में चार ही परिवार थे जिनमे गंगा ज्ञानी, रौणीकथा, जानकी दास, व पूरण के परिवार थे साथ में स्कूल व एक आयुर्वेदिक अस्पताल भी था| पर 1960 की प्रलयकारी बाद ने पुराने धर्मपुर का नामोनिशान ही मिटा दिया| इसके बाद एक ने धर्मपुर का विकास हुआ जो वर्तमान में एक कस्बे के रूप में विकसित हुआ| यहाँ अप्रैल माह में लगने वाला नलवाड़ क्षेत्र की जनता का मनोरंजन करता है|
स्रोत : हंस राज शर्मा, रिपोर्टर, पंजाब केसरी धर्मपुर
धर्मपुर का प्रसिद्ध धार्मिक एवं ऐतिहासिक किला कमलाह
कहते हैं इतिहास बदलने के लिए इतिहास बनाना पड़ता है I यही कार्य हिमाचल प्रदेश की मंडी रियासत के कार्यकाल के दौरान कमलाह श्रेणी पर किला बनाकर किया गया था I मंडी रियासत प्रदेश की प्राचीन रियासतों में से एक है जिसकी स्थापना बाहु सेन द्वारा की गई थी I आगे चलकर 1526 ईस्वी में अजबर सेन ने वर्तमान मंडी शहर को बसा कर इसे राज्य की राजधानी बनाया कहते हैं I मंडी रियासत को पड़ोसी रियासतों की आक्रमणों से बचाने के लिए रियासत की सीमा को पड़ोसी रियासतों की आक्रमणों से बचाने के लिए लगभग 350 किलों और चौकियों का निर्माण किया गया था I इसी कड़ी में राजा हरि सिंह ने 1605 ईस्वी में कमला गढ़ की नींव रखी राजा हरि सिंह अपने जीवन काल में इस किले के निर्माण को पूर्ण नहीं कर पाए जिससे उनके पुत्र सूरज सेन ने 1625 ई0 में पूरा करवाया I
लगभग 4500 फीट की ऊंचाई पर स्थित कमलागढ़ मंडी जिला की धर्मपुर तहसील में स्थित है I भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से कमलाह श्रेणी लगभग 90 डिग्री का कोण बनाती है I इन दुर्गम स्थितियों में किले का निर्माण करना अपने आप में एक अद्भुत कार्य था I किंतु सुरक्षा के दृष्टिगत यह कार्य पूरा किया गया किले की महत्ता इस बात से पता चलती है कि प्राकृतिक रूप से यहां चढ़ने के लिए कोई साधन नहीं था I
ऐतिहासिक साक्ष्यों की बात करें तो हिस्ट्री ऑफ़ पंजाब स्टेट किताब में किले का विवरण मिलता है जिसमें से 6 महत्वपूर्ण हिस्से में बांटा गया है I यह किला 360 बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है I जिसके सूरजपुर,बारूद खाना,चौबारा, अंधेर गली,बारादरी, पांचतीर्थी, कोट किला और अमररीढ़ा महत्वपूर्ण स्थल थे I किले के निर्माण के लिए जिस सामग्री का उपयोग किया गया उसमें पत्थर विशेष रहे जिन पत्थरों का उपयोग निर्माण में किया गया वह व्यास नदी और सोन खड्ड दूसरे तट पर पाए जाते हैं I जो किले से लगभग 20 से 25 किलोमीटर दूरी पर है I पत्थरों को यहां पहुंचाना और ऊपर ले जाना सबसे कठिन कार्य रहा होगा I
कमला गढ़ की आंतरिक विशेषताओं की बात करें तो किले में प्रवेश के लिए कोई रास्ता नहीं था I अगर कहीं चढ़ने की गुंजाइश मात्र थी तो वहां पर प्रवेश चौकी बनाई गई थी जिसे प्रौल कहा जाता था I उसके बाद किले का पहला प्रवेश द्वार था जहां तक जंजीरों और रस्सियों के सहारे चढ़ा जा सकता था उसके बाद दूसरा प्रवेश द्वार था I किले के अंदर सिपाहियों के लिए खाद्य भंडारण की व्यवस्था थी किले की अन्य विशेषताएं इस की तलाइयां थी किले में पानी की आवश्यकता इन्हीं से पूरी होती थी जो संख्या में 8 से 10 हैं I इतनी ऊंचाई पर चट्टानों पर 12 महीने पानी होना चमत्कार से कम नहीं लगता I जहां अनाज भंडारण एवं पानी की व्यवस्था थी वहीं पर अन्न पीसने की चक्की वर्तमान में यहां देखी जा सकती है I आपात स्थिति के दौरान निपटने के लिए यहां गुप्त गुफा भी मिलती है जिसे रानी की गुफा कहा जाता है I यह गुफा चट्टान को काटकर बनाई गई है जो एक गोल कमरे के समान प्रतीत होती है I
सामरिक दृष्टि से यह किला महत्वपूर्ण स्थान रखता था जिसकी प्राकृतिक विशेषताओं के कारण ही इसे अभेद्य किला भी कहा जाता था I यह किला जहां एक और कांगड़ा रियासत वहीं दूसरी तरफ हमीरपुर रियासत के सामने दीवार के समान अधिक खड़ा था I इसे विजय करने की अनेक प्रयास किए गए I किंतु दुर्गम और कठिन प्रकृति से इसे जीत पाना अत्यंत कठिन कार्य था मगर कहते हैं I मात्र एक बार सेंड जनरल वेंचुरा जो सिख सेना का जनरल था इसे जीत पाने में सफल हो पाया था I मगर जल्दी ही सिखों पर अंग्रेजों की विजय के पश्चात यह किला दोबारा मंडी रियासत के अधीन आ गया था I
स्वतंत्रता प्राप्ति तक यह किला मंडी रियासत के अधीन रहा हिमाचल प्रदेश बनने के पश्चात इसकी देखरेख पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया I जिस कारण किले की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती चली गई I यहां रखा गया सैनिक साजो सामान मंडी दरबार घर भिजवा दिया गया I जबकि कुछ सामान के लिए मैं ही मौजूद है I 80 के दशक में किले को भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश के अधीन किया गया I जिसके बाद इसकी देखरेख के लिए यहां विभाग द्वारा अधिकारी नियुक्त किए जाते रहे हैं I कुछ समय पहले तक यहां खुले में तो वह तलवारें, जंजीरें , बरछियां देखी जा सकती थी I यहां की सबसे बड़ी तोप जिसे खड़क बिजली कहा जाता है अभी भी किले में ही है I जिसे साल में एक बार राजा के जन्मदिन के अवसर पर चलाया जाता था I जिसकी गूंज दूर दूर सुनी जा सकती थी I
एक और कमलाह गढ़ जहां ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है वहीं इसका धार्मिक पक्ष भी है I मान्यता है कि इस जगह को जम्मू के डूग्गर क्षेत्र से आए बाबा ने अपना स्थान बनाया था I क्षेत्र में बाबा कमलाहिया को कुल देवता के रूप में पूजा जाता है I बाबा कमलाहिया का मंदिर जो की पहाड़ी की चोटी पर है आसपास के सभी क्षेत्रों से नजर आता है वर्षभर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है I वर्तमान में यहां पहुंचने के लिए किले के द्वार तक सड़क मार्ग बना है I यहां से 1000 सीढ़ियां चढ़ने पड़ती है मगर पुराने समय में जब लोग दर्शन करने आते थे तो अधिकतर चंबा नौण नामक स्थान पर रात्रि ठहराव करते थे I जबकि कुछ किले की अंदर रुकते थे I अगली सुबह दर्शन करके घर लौट जाया करते थे I मगर वर्तमान में यह प्रथा बदल सी गई है और लोग दिन दिन में ही दर्शन कर लौट जाया करते हैं I
स्रोत : लेखक विनीत ठाकुर